विकास की अवधारणा और इसका अधिगम से सम्बन्ध

(concept of development and its relationship with learning )वृद्धि – शरीर के विभिन्न अंगों के आकार मे परिवर्तन होने को वृद्धि कहाँ जाता है। जैसे शरीर की लंबाई का बढ़ना चौड़ाई और वज्जन का बढ़ना आदि है। इन सभी परिवर्तन का होना  (या सम्बन्ध) वहाँ की जलवायु परिवेश , वातावरण , भोजन पर र्निभार है, अर्थात कहा जा सका है, कि व्यकित के शरीर का बढ़ाने और  परिवर्तन होने का र्सव प्रमुख करना , बाह्म वातावरण से अन्त: क्रिया करना कहाँ जा सकता है। सोरेनसन ( sorenson ) के शब्दो में कहा जा सकता है ” अभिवृद्धि से आशय शरीर तथा शारीरिक अंगो मे भार तथा आकार की दृष्टि से वृद्धि होना है, ऐसी वृद्धि जिसको मापा जा सकता हो ।

विकास से  सम्बन्ध  परिवर्तन का होना  , विकास मे व्यक्ति मे मानासिक , सामाजिक , संवेगात्मक तथा शारीरिक दृष्टि से होने वाले परिवर्तनो को समिमतित किया जाता है ,तथा व्यावहारिक परिवर्तनों के जिसे लिए कार्य कुशलता, कार्य क्षमता , व्यक्तिगत स्वभाव मे पारिवर्तन या सुधार का होना समालित है।

विकास के समंबन्ध  मे प्रमुख शिक्षाशास्त्रीओ का काथन :

हरलॉक के अनुसार – हरलाँक कहते है  विकास का अर्थ बढ़ने से नही है इसका तात्पर्य  बलकि  परिपक्वावस्था की और परिवर्तनो का विकासत्मक क्रम  है। विकास के होने से बलका या व्यक्ति मे विष्ट योग्यताएँ और विष्ट विशेषताएँ देखने को मिलती है जो परिपक्कता से लक्ष्य को प्रप्त करने की ओर होता है।

स्किनर के अनुसार –  रिकनर का कहना है विकास जीवन और उसके वातावरण की अन्त: क्रिया का प्रतिफल है।

ड्रेयर के अनुसार – विकास, प्राणी मे प्रगतिशील परिवर्तन है, जो कि किसी  निशिचत लक्ष्य की की ओर लगतर निर्देशित होता है. ”

मुनरों के अनुसार विकास परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था है, जिसमें बालक भ्रणावस्था से पौढ़ावस्था तक गुजरता है।

गेसेल के अनुसार – गेसेल कहते है विकास को देखा जाँचा , मापा जा सकता है, तीन प्रमुख दिशाओ के अनर्तागत , यह सम्भाव है  जो है –  शरीक विशलेषण , शरीक ज्ञान तथा व्यवहारात्मक । इन्हें मापा जा सकता है। इन सभी में व्यवाहरिक संकेत ही सबसे अधिक विकासात्मक स्तर और विकासात्मक शक्तियो को प्रकट करता है।

मानव विकास कि अस्थाएँ-  इन्हें सात कालो के नाम से जाता है,जो है :

  1. गर्भावस्था गर्भाधान से जन्म तक ।

  2. शैशवावस्था  जन्म से 5 वर्ष तक ।

  3. बाल्यावस्था 5 से 12 वर्ष तक ।

  4. किशोरावस्था 12 वर्ष से 18 वर्ष तक ।

  5. युवावस्था 18 वर्ष से 25 वर्ष तक ।

  6. प्रौढ़ावस्था 25 वर्ष से 55 वर्ष तक ।

  7. वृद्धावस्था 55 वर्ष से मृत्यु तक ।


मानव विकास की अवस्थाए :

मानव विकास जीवन- पर्यन्त चलाने वाली प्रक्रिया है। यधापि शारीरिक विकास ( Physical Development ) एक सीमा के बद रूक जाती है। पर मनोशरिक  क्रियाओ में विकास निरन्तर चलता रहता है, जो कि है – चारित्रिक विकास , मानसिक विकास( Cognitive Development ) , भाषायी विकास ( Language Development ) सवेगात्मक विकास ( Emotional Development )  और सामाजिक विकास ( Social Development )  समालित है। इन सभी गतिविधिओ का विकास विभिन्न आयु स्तरों मे भिन्न- भिन्न प्रकार से होता रहता है।


शारीरिक विकास एवं अधिगम (Physical Development and Learning )

 शारीरिक विकास से सम्बन्ध बालक के आन्तरिक और बाह्य अवयवो का विकास होना I जैसे : बाह्य विकास मे ऊंचाई का बढ़ना, वज्न मे वृद्धि होना आदि सामालित है। (जिसे देखा जा सकता है। ) और आन्तरिक विकास में शारीर के भीतर जो विकास होता है उसे सामालित है। उसे देखा नही जा सकता पर  विकास निर्णतर चलता रहता है।


मानासिक विकास एवं अधिगम – ( Cognitive or Mental Development and Learning ) –

संज्ञानात्मक या मानसिक विकास  से तात्पर्य है – कल्पना  करना , निरीक्षण करना, स्मरण करना, विचार करना, निर्णय लेना , समस्या – समाधान करना , इत्यादि विभिन्न योग्यता संज्ञानात्मक विकास से ही विकसित होते है।


अर्थत कहा जा सकता है-

बालक के उन सभी मानासिक योग्यताओं एवं क्षमताओ में वृद्धि और विकास ही समालित है जिस करण से वह अपने आस – पास के बदलते वातावरण से समयोजन कर पाता है और आपने देनिक जीवन के समस्यओ को सुलझाने मे अपने मानसिक  शक्तियो का र्पुण उपयोग आसानी से कर पाता है।


सांवेगिक विकास एवं अधिगम ( Emotional Development and Learning )

संवेग से अर्थ – ऐसी अवस्था जो बालक के व्यवहार को प्रभावित करती है जैसे : क्रोध, घृणा, भय , स्नेह, आशचर्य आदि है।

मनोगत्यात्मक विकास एव अधिगम ( Motor Development and Learning )

मनोगत्यात्मक विकास से अर्थ एसा कार्य जिस मे व्यक्ति की क्रियात्मक क्षमतओ या योग्यताओं का विकास होता है, और किसी र्काय को पूर्ण करने में जो माँसपेशियो एवं तत्रिकाओ की गतिविधियों  के संयोजन की आवश्यकता होती है। जैसे- चलना , बैठना आदि है।


अधिगम Learning : अधिगम से अर्थ  सीखना

बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाएँ एवं उनका  अधिगम से सम्बन्ध ( various stage of child Development and its Relationship  with Learning )


शैशवाषस्था  एव इसके दौरान अधिगम (Infancy and Learning in the Stage)

  • जन्म से 6 वर्ष तक की अवस्था को शैशवावस्था कहा जाता हैं। इसमें जन्म से 3 वर्ष तक बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से होता है।

  • समाजीकरण भी बच्चो का इसी काल मे प्रारम्भ हो जाता तथा अनुकरण करना दोहराना जैसी प्रवृति विकसित हो जाती है ।

  • शिक्षा की दृष्टि से भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण मना जाता है।

बाल्यावस्था एव इसके दौरान अधिगम ( Childhood and Learning in this Stage )

  • 6 वर्ष से 12 वर्ष तक की अवस्था को बाल्यावस्था कहा जाता है।

  • बाल्यावस्था के प्रथम चरण 6 से 9 वर्ष में बालकों की लम्बाई एवं भार दोनों बढ़ते है।

  • इस काल में बच्चों मे चिन्तन एवं तर्क शकितयो का विकास हो जाता है।

  • इस काल के बाद से बच्चे पढ़ाई में रूचि लेने लगते हैं।

  • शैशवस्था में बच्चे जहाँ बहुत तीव्र गति से सीखते है, वहीं बाल्यावस्था मे सीखने की गति मन्द हो जाती है।

  • मनौवैज्ञानिको की दृष्टि से इस अवस्था में बच्चों की शिक्षा के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग करना चाहिए ।

 

किशोरावस्था एवं इसके दौरान अधिगम Adolescence and Learning in this Stage –

यह भी पढ़ें

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.